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लेखनी कहानी -14-Dec-2022 जीजा और फूफा

आजकल फूफाओं के दिन बड़े खराब चल रहे हैं । कोई पूछता ही नहीं है उनको । हालांकि वे पुछवाने के सारे जतन कर चुके हैं मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात । एक जमाना था जब उनकी तूती बोला करती थी । ससुराल में उनका "राज" हुआ करता था । सासू जी उनके लिए "छप्पन भोग" बनाया करती थीं और उनके "भोग" लगाये बिना घर का कोई प्राणी अन्न जल ग्रहण नहीं करता था । साली हाथ में टूथपेस्ट और ब्रश लेकर वाश बेसिन के आगे तैयार खड़ी रहती थी और साला नैपकिन पकड़े घंटों खड़ा रहता था । सलहज अपने नाजुक नर्म हाथों से पीठ पर साबुन मलती थी । तब जिंदगी जन्नत सी लगती थी । ससुर जी कितनी मनुहार कर करके खाना खिलाते थे । और सासू मां का लाड़ तो अवर्णनीय था । दसों उंगली घी में और सिर कड़ाही में था । माल "खींचने" में इतने व्यस्त रहते थे कि अपनी सेहत ही खराब कर लेते थे । 

पर अब वक्त बदल गया है । अब वे जीजा से फूफा बन गये हैं । इतनी तबदीली आ जायेगी, ये नहीं सोचा था उन्होंने । अब तो वे एक ही गाना गुनगुनाते दिखाई देते हैं "जाने कहां , गये वो दिन कहते थे तेरी राह में कदमों को हम बिछायेंगे" ।

अब ना वो दौर है और ना ही वो तौर तरीके । पहले "जीजा" हुआ करते थे जीजा । जीजा मतलब "जी" यानि दिल और "जा" मतलब जन्म लेना जैसे भूमिजा यानि कि भूमि से जन्म लेने वाली । तो "जीजा" का मतलब है जी से जन्म लेने वाला यानि दिल से जन्म लेने वाला बंदा । बेटी तो जिगर का टुकड़ा होती है और उस टुकड़े को जो संभाल ले वह जी जान से प्यारा होगा कि नहीं ?  हर दामाद ससुराल वालों के दिल से जन्म लेता है इसलिए वह "जीजा" कहलाता है । तो जो व्यक्ति जी से जन्म लेगा वह वी वी आई पी तो होगा ही ना ? और ऐसे वी वी आई पी को वी वी आई पी की तरह से ही सम्मान मिलना चाहिए कि नहीं ?

धरती के ऐसे अद्भुत प्राणी "जीजा" के ठाठ निराले थे । ससुराल में "चरने" और "पलंग तोड़ने" के अलावा और कोई काम तो था नहीं उसके पास, तो टाइम पास कैसे होता वहां ? इसके लिए उन्होंने एक युक्ति निकाल ली । दिमाग खूब चलता है जीजाओं का । और चले भी क्यों नहीं ? सासू मां रोज एक कटोरा मक्खन खिलाती हैं तो उसका असर,तो होगा ही । जीजा का एक तरह से एकछत्र राज होता है ससुराल में इसलिए उसे कुछ भी करने की आजादी थी । जीजा बांका जवान होता है और जवां दिलों की ख्वाहिशें भी जवां ही होती हैं । इसलिए जवान साली को सामने देखकर उसके इश्क का महासागर उफानें मारा करता है । वैसे तो उसे कोई रोक टोक नहीं थी पर लोकलाज नाम की भी तो कोई चीज होती है ना ! उसका मन साली को छेड़ने के लिए मचलने लगा मगर लोकलाज बीच में आ खड़ी हुई । बेचारा जीजा मन मसोस कर रह जाता था । 

पर जीजा तो जीजा है, इसका भी एक तोड़ निकाल लिया उसने । उसने गांव के समस्त जीजाओं की एक मीटिंग बुलाई और उसमें कहने लगा "भाइयो, हम लोग जब ससुराल में आते हैं तो अपने कितने काम धंधा छोड़कर आते हैं । इससे कितना नुकसान होता है हमारा ? कभी सोचा है ? नहीं ना ? इसके बावजूद हमने कभी उफ तक नहीं की । मगर यहां टाइम पास कैसे करें ? सासू मां वापस जाने नहीं देती और बीवी पास आने नहीं देती । बड़ी समस्या है ।  गांव में मनोरंजन का कोई साधन भी नहीं है तो अपना टाइम पास कैसे हो ? अब तो एक ही तरीका है टाइम पास करने का , और वो तरीका है "छेड़छाड़" ।  जवान साली से छेड़छाड़ का अधिकार मिल जाये तो फिर वक्त का पता ही नहीं चलेगा । फिर जितने दिन चाहो, ससुराल में रोक लो , हम जाने की जिद नहीं करेंगे । क्यों भाइयो, कैसा विचार है" ? 
एकमत से सबने इस विचार को बहुत पसंद किया और समवेत ध्वनि में कोरस गान करने लगे 
"सुन्दर सुन्दर सुन्दर भाई, उत्तम उत्तम उत्तम भाई" 

बहुत गहन चिंतन, मनन करने और सालियों की इच्छा जानने के बाद गांव के "ससुर" लोगों ने जीजाओं की मांग मान ली और उन्हें सालियों से छेड़छाड़ करने का अधिकार दे दिया । मगर जीजा लोग कोई कच्चे नहीं थे । कहने लगे "क्या पता कल पलट जाओ, इसलिए स्टाम्प पेपर पर लिखकर दो" । बेचारे ससुर ! और क्या करते ? लिखकर दे दिया "साली आधी घरवाली होगी" । बस उसी दिन से जीजा लोग सालियों को आधी घरवाली मानने लग गये । अब ससुराल से वापस जाने का मन ही नहीं करता उनका । 

इसमें भी एक समस्या उत्पन्न हो गई । जिसके साली नहीं थी वो क्या करे ? वो अपना टाइम पास कैसे करे ? बहुत सोच विचार के बाद जीजा ने इसका भी समाधान निकाल लिया । साली नहीं है तो क्या हुआ साले की पत्नी "सलहज" तो है । उससे भी मन बहलाया जा सकता है । बस फिर क्या था , उसे छेड़ने का "आदेश" प्राप्त कर लिया जीजा ने । हालांकि यह बात स्टाम्प पेपर पर लिखकर नहीं दी थी मगर ससुराल की इतनी विश्वसनीयता तो माननी पड़ेगी । तो इसी अलिखित परंपरा के आनंद लेने लग गये जीजाजी । 

समय बदला , सोच बदली । अब वे जीजा से फूफा बन गये हैं । फूफा बनते ही सत्ता भी बदल गई । अब ससुर जी सत्ता से बेदखल हो गये । सत्ता बेटे ने औरंगजेब की तरह हथिया ली और ससुर जी शाहजहां की तरह खाट पर पड़े पड़े "ताजमहल" को ताकने लगे । अब उनके हाथ में कुछ नहीं रहा इसलिए ससुर जी अपने ही बेटे को दिन रात गालियां दे रहे हैं । जीजाओं की दाल सास और ससुर के दम पर ही तो गलती थी । जब वे ही कमजोर हो गये तो अब फूफाओं को कौन पूछे ? बेचारे फूफा लोग टुकुर टुकुर देख रहे हैं । अपनी बेबसी को कोस रहे हैं । पुराने दिन याद कर करके आहें भर रहे हैं । उनकी उम्मीदों का गुलशन मुरझाा गया है । अब ससुराल जाने की भी इच्छा नहीं होती है । जब तक साली थी तब तक ससुराल जाने की तमन्नाऐं भी जवां थीं मगर जबसे साली की शादी हुई है , ससुराल जाने की ख्वाहिश भी चकनाचूर हुई है । रही सही कसर साले के बच्चों ने पूरी कर दी । कोई टका सेर पूछने को तैयार नहीं है फूफा को । फूफा ने रूंसने की नौटंकी भी करके देख ली मगर किसी को कोई लेना देना नहीं लगा । थक हार कर खुद ही मान गये और भविष्य में नहीं रूंसने की भी कसम खा ली । अब तो कभी कभार ही ससुराल में पाये जाते हैं फूफा । अब "फू" "फा" करने का जमाना भी नहीं रहा ना । समय के अनुसार हर रिश्ता बदलता रहता है । आज के जमाने में या तो बेकदरी  फूफा की हुई है या ताऊ की । 

श्री हरि 
14.12.22 


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2 Comments

Muskan khan

14-Dec-2022 06:00 PM

Well done

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Hari Shanker Goyal "Hari"

14-Dec-2022 11:31 PM

धन्यवाद जी

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